कोरोनाकाल में पूरी दुनिया को समझ आ चुका है कि अब हमें कोरोना के साथ ही जीना होगा। फेसमास्क, सैनिटाइज़र और सोशल डिस्टेंसिंग अब मानव सभ्यता के जीवन का हिस्सा बन चुके हैं। वहीं एक प्रश्न स्वतः ही उठ खड़ा होता है कि क्या लगभग 142 करोड़ की आबादी वाले देश भारत में सोशल डिस्टेंसिंग के द्वारा कोरोना के प्रकोप से बचा जा सकता है? मेरे विचार से इसका उत्तर नहीं के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हो सकता। ऐसा क्यों है, इसे जानने के लिए आपको कुछ आंकड़ों को बारीकी से समझना होगा।
भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग किमी. है और 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में आबादी का घनत्व 382 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. था जो कि आज बढ़कर लगभग 464 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. हो चुका है। इसके अनुसार हर वर्ग किमी. में भारत में 464 व्यक्ति निवास करते हैं। मतलब भारत में प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में 2155 वर्ग मी. भूमि आती है। जिसमें उसके द्वारा सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए 2 गज की दूरी बनाकर जीना असंभव नहीं होगा।
परन्तु यदि हम देखें कि लोगों के रहने के निजी उपयोग के लिए कितनी भूमि भारत में उपलब्ध है तो आंकड़ें चौंकाने वाले आते हैं। इसे समझने के लिए यहां ये बताना बहुत आवश्यक है कि देश की कितनी भूमि व्यक्ति अपने रहने के लिए निजी उपयोग में लाता है?
केन्द्रीय जल आयोग के अनुसार हमारे देश में बहने वाली नदियों की कुल लम्बाई 43,06,456.639 किमी. है, नहरों की कुल लम्बाई 3,32,183.494 किमी. है तथा अन्य जलस्रोतों जैसे-तालाबों, झीलों आदि की कुल संख्या 7,96,588 है। इसके अनुसार हमारे भारत में नदियों में लगभग 7,53,630 वर्ग किमी. भूमि, नहरों में लगभग 16,610 वर्ग किमी. भूमि तथा अन्य जलस्रोतों में 48,963 वर्ग किमी. भूमि का उपयोग होता है। इस प्रकार हमारे देश की कुल भूमि में से लगभग 8,19,203 वर्ग किमी. भूमि का उपयोग सिर्फ हमारे जलस्रोतों में ही हो जाता है।
हमारे देश में वनों का कुल क्षेत्रफल 7,12,249 वर्गकिमी. है। सार्वजनिक उपयोग में आनेवाली सड़कें, रेलवे आदि को अगर हम देखें तो हमारे देश में सड़कों की कुल लम्बाई 58,97,671 किमी. है, जिसमें 1,42,126 किमी. लम्बाई के राष्ट्रीय राजमार्ग, 1,76,166 किमी. लम्बाई के राजकीय राजमार्ग, 6,23,429 किमी. लम्बाई की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से निर्मित सड़कें, 5,61,940 किमी. लम्बाई की जनपदीय सड़कें व 43,94,010 किमी. लम्बाई की अन्य शहरी एवं ग्रामीण सड़कें हैं। इस प्रकार हम देखें तो राष्ट्रीय राजमार्गों में लगभग 21,320 वर्ग किमी. भूमि, राजकीय राजमार्गों में लगभग 8,800 वर्ग किमी. भूमि, पीएमजीएसवाई में लगभग 6,200 वर्ग किमी. भूमि, जनपदीय सड़कों में लगभग 11,200 वर्ग किमी. भूमि व अन्य शहरी व ग्रामीण सड़कों में लगभग 44,000 वर्ग किमी. भूमि का उपयोग हुआ है। इस प्रकार देश में सड़कों के लिए लगभग 91,520 किमी. भूमि का उपयोग हुआ है।
वहीं भारत में मार्च 2017 तक रेलवेज की कुल लम्बाई 1,21,407 किमी. थी, जिसके अनुसार देश में फैले रेल नेटवर्क में लगभग 18,210 वर्ग किमी. भूमि का उपयोग हुआ है। साथ ही देश की कुल 7516.6 किमी. लम्बी कोस्टल लाईन में नियमानुसार लगभग 3758 वर्ग किमी. भूमि प्रयोग में नहीं लाई जा सकती है। इसी प्रकार देश में स्पेशल इकोनोमिक ज़ोन में लगभग 2,061 वर्ग किमी. भूमि का प्रयोग हो रहा है। कृषि के क्षेत्र में वर्ल्डबैंक की जुलाई 2020 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में कृषि भूमि का कुल क्षेत्रफल लगभग 17,97,210 वर्ग किमी. है। जिसमें से लगभग 15,64,630 वर्ग किमी. भूमि कृषि उपयोग में लाई जाने योग्य है।
भारत की कुल भूमि में से 13,297 वर्ग किमी. भूमि पाक अधिकृत कश्मीर की है जो कि वर्तमान में पाकिस्तान के कब्जे में है और 5,180 वर्ग किमी. भूमि अक्साईचिन की है जो कि चीन के कब्जे में है। इस प्रकार भारत की कुल भूमि में से लगभग 20,477 वर्ग किमी. भूमि पाकिस्तान और चीन के कब्ज़े में है।
हम उपरोक्त सभी विभिन्न प्रकार के उपयोग में आने वाली भूमि के क्षेत्रफलों को जोड़ने पर पायेंगे कि हमारे देश की कुल 32,87,263 वर्ग किमी. भूमि में से लगभग 32,32,108 वर्ग किमी. भूमि का उपयोग विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों में होता है। इस प्रकार हमें पता चलता है कि व्यक्तियों के रहने के निजी उपयोग के लिए मात्र 55,155 वर्ग किमी. भूमि ही बचती है। यदि हम इस प्रकार आंकलन करेंगे तो पायेंगे कि 142 करोड़ की आबादी के रहने हेतु निजी उपयोग में आने वाली भूमि के आधार पर जनसंख्या घनत्व लगभग 25,745 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी. बैठता है। इसका मतलब प्रत्येक व्यक्ति के रहने के लिए लगभग 38 वर्ग मी. भूमि ही हमारे देश में उपलब्ध है। जबकि इसमें अभी व्यावसायिक उपयोग में लाई जाने वाली भूमि, पार्क, खेल के मैदान, कब्रिस्तान, शैक्षिक संस्थान, धार्मिकस्थल, देश की सीमा की इनरलाईन, सरकारी व निजी क्षेत्र के कार्यालय, अस्पताल, हवाईअड्डे, एसईजेड के अतिरिक्त अन्य भारी, मध्यम, लघु एवं ग्रामीण उद्योग के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली भूमि आदि को नहीं घटाया गया है।
सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने हेतु जो सुझाव प्रधानमंत्री द्वारा दिया गया है, उसका पालन देश की इतनी बड़ी आबादी को कर पाना मुश्किल ही नहीं पूर्णतया नामुमकिन दिखाई देता है। क्योंकि यदि प्रत्येक व्यक्ति सभी से 2 गज की दूरी बनाकर रखता है तो उसे लगभग 15 वर्ग मी. भूमि की आवश्यकता होगी, जो कि उपरोक्तानुसार पूर्ण होता नहीं दिखाई देता। यह लेख पढ़कर अनेकों लोगों के मन में यह प्रश्न अवश्य आया होगा कि यदि हमारे देश में लोगों के रहने के लिए भूमि इतनी कम है तो इतने लोग हमारे देश में कैसे रह रहे हैं? मेरा उन सभी महानुभावों से निवेदन है कि वे अपना ध्यान शहरों की बहुमंजिला इमारतों और बस्तियों पर जरूर डालें, जिससे आपको इस लेख में छिपे सभी प्रश्नों के उत्तरस्वतः ही मिल जायेंगे और यह भी समझ आयेगा कि हम कैसे भारत के निमार्ण में प्रयासरत हैं।
अतः यदि देश में आने वाली किसी भी प्रकार की विपत्ति को रोकना है तो सबसे पहले जनसंख्या के घनत्व को और बढ़ने से रोकते हुए उसे कम करने का प्रयास करना होगा, अन्यथा यह बढ़ती हुई आबादी भविष्य के भारत को गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, अपराध आदि की दलदल में धकेलने के साथ-साथ लोगों के जीवन से भी जरूर खेलेगी।
(लेखक टैक्सपेयर्स एसोसिएशन ऑफ भारत के अध्यक्ष हैं। यह उनके निजी विचार हैं)
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